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Sital Sasthi 2024:भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य विवाह महोत्सव

Sital Sasthi

Sital Sasthi

Sital Sasthi एक हिंदू त्योहार है, इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के दिव्य विवाह का जश्न मनाया जाता है । यह पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ महीने शुक्ल पक्ष (चंद्रमा के बढ़ते चरण) के दौरान ‘षष्ठी’ (छठे दिन) को मनाया जाता है। यह तिथि प्रत्येक वर्ष ज्यादातर मई-जून के महीने में पड़ता है। शीतल षष्ठी अपनी तरह का अनोखा त्योहार है जिसे कार्निवल के रूप में मनाया जाता है।

शीतल षष्ठी एक उत्सव है जिसमें देवी पार्वती को एक परिवार द्वार गौद लिया जाता है, और परिवार द्वार उनकी शादी अनुष्ठान की जाती है। विवाह सम्पन्न होने के बाद, भगवान शिव और देवी पार्वती को एक बारात के माध्यम से पूरे सहर के परिक्रमा किया जाता है।शीतल षष्ठी पूरे भारत में, विशेषकर उड़ीसा के संबलपुर जिले में अत्यधिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाई जाती है। शीतल षष्ठी पर संबलपुर कार्निवल एक लोकप्रिय कार्यक्रम है जो पूरे भारत और विदेशों से हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है।

Sital Sasthi 2024: पूजा तिथि और समय

सूर्योदय 11 जून, प्रातः 5:44
सूर्यास्त 11 जून, शाम 7:08 बजे
शीतल षष्ठी तिथि का समय 11 जून, 05:27 अपराह्न – 12 जून, 07:17 अपराह्न

शीतल षष्ठी उत्सव कैसे मनाया जाता है ?

शीतल षष्ठी का त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह समारोह के रूप में मनाया जाता है। संबलपुर में इसे ‘शीतल षष्ठी षष्ठी यात्रा महोत्सव’ के रूप में मनाया जाता है, जो 5 दिनों तक चलता है।

इस त्योहार के दौरान, एक क्षेत्रीय परिवार पार्वती के माता-पिता की भूमिका निभाता है और विवाह के लिए उनके हाथ शिव को सौंपता है। चूँकि भगवान शिव ‘स्वयंभू’ हैं, इसलिए उनके माता-पिता की भूमिका कोई नहीं निभाता है।

पहले दिन ‘पात्रा पेंडी’ दिवस पर, परिवार पार्वती को गोद लेता है। दो दिन बाद, देवी पार्वती की मूर्ति उनके दत्तक घर आती है और वहां से विवाह के लिए भव्य जुलूस में ले जाई जाती है। भगवान शिव अन्य देवी-देवताओं के साथ विवाह स्थल पर पहुंचते हैं, जहां भगवान नरसिम्हा और हनुमान जुलूस का नेतृत्व करते हैं।

इस दिव्य विवाह में सभी पारंपरिक अनुष्ठान निभाए जाते हैं। अगली शाम, दिव्य जोड़ा ‘नगर परिक्रमा’ यात्रा पर निकलता है, जिसे ‘शीतल षष्ठी- षष्ठी यात्रा’ कहा जाता है। लोक संगीत, नृत्य और अन्य कार्यक्रम इस कार्निवल का मुख्य आकर्षण होते हैं। इस अवसर पर हिजड़े भी उत्सव में भाग लेते हैं, क्योंकि भगवान शिव को ‘अर्धनारीश्वर’ भी कहा जाता है।

शीतल षष्ठी का महत्व

‘शिव पुराण’ के अनुसार, शीतल षष्ठी षष्ठी का दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह की स्मृति को ताजा करता है और इसे प्राचीन समय से मनाया जाता रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पार्वती (देवी सती का पुनर्जन्म) ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन ‘जप’ और ‘तप’ किया।

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन, शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उनका दिव्य विवाह सम्पन्न हुआ। इसके बाद भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने राक्षस तारकासुर का वध किया। शीतल षष्ठी को भगवान शिव और पार्वती के ‘मानसून विवाह’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह मानसून की शुरुआत का प्रतीक है। शिव की कठोर तपस्या भीषण गर्मी का प्रतीक है, जबकि लोग, विशेष रूप से किसान, इस दिव्य विवाह के साथ मानसून का स्वागत करते हैं।

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